आइये! सीखें स्ट्रेस मैनेजमेन्ट के गुर


लेखक : डॉ अतुल प्रताप सिंह

स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव जब अपने चरम बिन्दु पर पहुँच जाता है, तो आत्महत्या जैसी घातक प्रवृत्तियों को जन्म देता है। आज—कल किशोरों एवं युवाओं में इस प्रकार की प्रवृत्तियाँ प्रायः देखी जा रही हैं। समय रहते यदि स्ट्रेस मैनेजमेन्ट का कौशल नहीं सीखा एवं तदनुसार प्रयोग किया जायें तो स्थितियाँ और अधिक भयंकर हो सकती हैं। इसके लिए आवश्यक है कि सबसे पहले स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव के लक्षणों, कारणों एवं उसे दूर करने के ढंगों को जाना एवं समझा जाये। कैसे, आईये जाने:

आज के सूचना प्रौघोगिकी के युग में जहाँ सुख—सुविधाओं के साधन तीव्रता से बढ़ रहे हैं, वहीं लोगों में छोटी—छोटी बातों को लेकर स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव इस हद तक बढ़ रहा है कि कुछ लोग तो आत्मघाती कदम उठाने से भी नहीं चूकते हैं। आज—कल किशोरों एवं युवाओं के बीच भी ऐसे स्ट्रेस के कुछ प्रमुख कारण अच्छे अंकों से पास होने का अत्यधिक बोझ, बढ़ती हुई गला—काट प्रतिस्पर्धा, कैरियर या जॉब की चिंता, रातों—रात आगे बढ़ने की महत्वाकांक्षा, अत्यधिक कार्य—भार इत्यादि के साथ—साथ जीवन में अचानक आने वाली अप्रिय एवं अवांछनीय घटनायें हैं।

विभिन्न प्रकार की जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियों का दृढ़ता पूर्वक सामना करने की सीख पहले किशोरों एवं युवाओं को अपने परिवार एवं पड़ोस के वरिष्ठ सदस्यों से ही प्राप्त होती थी। संयुक्त परिवारों के वरिष्ठ सदस्य कठिनाइयों के समय ढाल बन कर उनसे मुकाबला करने में सहायक हाने के साथ—साथ भविष्य मैं आने वाली संघर्षमय प्रिस्थितियों के लिए सबक भी देते थे। परन्तु, आज के व्यक्तिवादी, भौतिकवादी, सुखवादी तथा उपभोक्तावादी युग की भाग—दौड़ भरी जिंदगी में जहाँ संयुक्त परिवारों का स्थान प्रायः लुप्त हो चुका है, वहीं दूसरी और औघोगीकृत महानगरीय एवं नगरीय संस्कृति की उपज अर्थात् एकाकी परिवारों में भी उनके सदस्यों द्वारा आपस में एक—दूसरे के साथ समय व्यतीत न कर पाने के कारण न केवल बच्चे, बल्कि बड़े सदस्य भी सामाजिक सीख के लाभों से वंचित होते जा रहे हैं। साथ ही, मनोरंजन के पारम्परिक साधनों जिनमें कि सामूहिक भागीदारी एक विशिष्ट गुण होता था, उसका स्थान केबल टी.वी. इंटरनेट, वीडियो गेम्स, डिसको एवं डी.जे. आदि ने ग्रहण कर लिया है जो कि व्यक्तिगत अभिरूचि एवं पसन्द पर आधारित होते हैं। जिसके फलस्वरूप, एकांकी परिवारों में भी उसके सदस्यों की सीमित संख्या के होते हुए भी संवाद की कमी के कारण सम्प्रेषण अन्तराल (कम्युनिकेशन गैप) बढ़ता जा रहा है।

वर्चुअल वर्ल्ड अर्थात् इंटरनेट की दुनिया सूचना प्रौघोगिकी का आधुनिकतम रूप है। आज मानवीय कल्पनाओं की सीमा के भीतर शायद ही ऐसा कोई क्षेत्र बचा हो, जिससे सम्बन्धित सूचनायें इंटरनेट पर न उपलब्ध हों। साथ ही फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप्प, यू—ट्यूब, लिंक्डइन, माईस्पेस, साउण्ड क्लाउड तथा ऐसे ही अनेक सोशल मीडिया नेटवर्किंग वेबसाइटों एवं एप्लीकेशन्स की भी लोकप्रियता दिनों—दिन बढ़ती ही जा रही है। ऐसे में यह वर्चुअल वर्ल्ड एक ऐसा चुम्बकीय आकर्षण हैं, जिसके प्रभाव में बच्चे, युवा, प्रौढ़ एवं वृद्ध सभी जकड़े हुए हैं। स्मार्ट फोन एवं टैबलेट्स की तेजी से बढ़ती लोकप्रियता तथा इन पर इंटरनेट की एक्सेस कर पाने की सुविधा से वर्चुअल वर्ल्ड लोगों की मुट्ठी अथवा जेब में आ चुका है। इस वर्चुअल वर्ल्ड की प्रमुख विशिष्टता यह है कि इसने सम्पूर्ण विश्व को एक साथ जोड़ रखा है जिसने लोगों की विशेषकर युवाओं की महत्वकांक्षाओं के स्तर को अत्यधिक ऊँचा कर दिया है। यह स्थिति स्ट्रेस अथवा तनाव को जन्म देने का कारण बनती है, क्योंकि कई बार व्यक्तिगत क्षमताओं एव महत्वकांक्षाओं के स्तर में समानता या तालमेल नहीं होता है। इसके अतिरिक्त, किशोरों एवं युवाओं का शारीरिक परिश्रम वाले खेलों के प्रति भी रूझान कम होता जा रहा है, जो कि मनोरंजन के साथ—साथ स्वस्थ प्रतिस्पर्धा तथा तनाव को कम करने में भी सहायक होते हैं।

इन स्थितियों के रहते, किशोरों एवं युवा जीवन में दिन—प्रतिदिन आने वाली समस्याओं के सम्बन्ध में स्वयं को अकेला और निःसहाय पाते हैं तथा उचित समाधान न ढूंए पाने की स्थिति में असुरक्षा के महसूस होते ही तनावग्रस्त हो जाते हैं, जिसका सीधा प्रभाव उनके पारिवारिक एवं व्यावसायिक सम्बन्धों पर पड़ता है। कभी—कभी तो स्थितियाँ इतनी गम्भीर एवं कष्टप्रद हो जाती हैं कि लोग अपना आत्मविश्वास ही खो बैठते हैं, विभिन्न प्रिस्थितियों में सांमजस्य नहीं बिठा पाते हैं उचित निर्णय नहीं ले पाते हैं तथा मानसिक सन्तुलन बिगड़ने के परिमाणस्वरूप, आत्महत्या तक कर लेते हैं।
अतः यह अत्यन्त ही आवश्यक है कि व्यक्तिगत एवं व्यावसायिक जीवन की दिन—प्रतिदिन की समस्याओं से उत्पन्न होने वाले स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव से छुटकारा पाने के लिए कोई सुरक्षात्मक युक्तियों अथवा उपायों की व्यवस्था हो, जिनके माध्यम से गम्भीर स्थितियों के उत्पनन होने से बचा जा सके। आइये स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव के लक्षणों कारणों एवं उसे दूर करने के ढंगों को समझने का प्रयास करते हैं:

स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव के लक्षण

स्मरण या याद रखने की क्षमता में कमी आना।

स्वयं को एकाग्रचित करने की क्षमता का कम होना।

समुचित नर्णय न ले पाना।

केवल नकारात्मक बातें की सोचते रहना।

सदैव किसी न किसी बात के लिए चिंतित रहना।

अवसाद या अप्रसन्नता से ग्रस्त रहना।

दस्त या कब्ज का होना।

भूख न लगना।

पर्याप्त रूप से नींद का न ले पाना।

दूसरों के साथ स्वयं को अलग कर एकाकी जीवन जीना।

आराम या फुर्सत के लिए शराब, सिगरेट या फिर अन्य नशीले पदार्थों का अत्यधिक सेवन करना।

जीवन को खुलकर न जी पाना।

घबराहट के संकेत दिखना, जैसे नाखून चबाना।

स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाब के कारण

जीवन में आने वाले प्रमुख पड़ाव या परिवर्तन।

अचानक से उत्पन्न होने वाली संकट की स्थितियाँ।

बोर्ड एवं प्रतियोगी परीक्षायें।

पारिवारिक सम्बन्धों में आने वाले संकट

माता—पिता के बीच मधुर सम्बन्धाों का अभावा।

वित्तीय संकट।

क्षमताओं के विपरीत अत्यधिक महत्वाकांक्षायें।

गम्भीर रूप से चिंता।

प्रत्येक समय किसी न किसी वस्तु की अभिलाषा।

किसी भी स्थिति से सन्तुष्ट या प्रसनन होने का अथाव।

पॉजिटिव थिंकिंग या सकारात्मक सोच की कमी।

मित्र समूह में अधिकतर धनी लोगों की उपस्थिति।

मित्रों के बीच रूचियों, प्राथमिकताओं एव आकांक्षाओं में असमानता।


आत्म मूल्यांकन एवं स्वयं की क्षमताओं की प्रति अचेतना।

दूसरों के साथ हर समय प्रतिस्पर्धा की प्रवृत्ति।

स्ट्रेस अथवा तनाव या दबाव दूर करने के उपाय

स्ट्रेस मैनेजमेन्ट के लिए कुछ अत्यन्त ही सुगम एवं सरल उपाय निम्नलिखित प्रकार से हैं:

1- समस्या को दूसरों से शेअर करें:
प्रायः, यह देखा जाता है कि किशोर एवं युवा अपनी समस्याओं को अत्यन्त ही व्यक्तिगत एवं अन्तरंग बना लेते हैं तथा किसी के भी साथ शेअर अथवा साझा नहीं कर पाते हैं। उन्हें चाहिये कि अपनी प्रत्येक प्रकार की समस्याओं को अपने प्रियजनों के साथ शेयर करें। ऐसा इसलिए कि इससे एक तो मन को बोझ कम होगा, वहीं ऐसा करने से उनके प्रियजन समस्या के पहलुओं पर विचार कर उसके समाधान में सहायता कर सकते हैं।

2- माता—पिता को अपना मित्र बनायें: एक पुरानी कहावत प्रचलित है कि ट्टजब माता—पिता का जूता बेटी—बेटे के पैरे में आने तो उन्हें अपना दोस्त बना लेना चाहिये। परन्तु, व्यवहारिक जीवन में ऐसा हो नहीं पाता है। दोनों ओर से एक—दूसरे के प्रति दोस्ताना व्यवहार अपनाने में हिचकिचाहट रहती है। इसी कारण बहुत से किशोर एवं युवा अपनी समस्यायें अपने माता—पिता से बता नहीं पाते हैं, क्योंकि उनके बीच बातों के आदान—प्रदान में खुलेपन का अभाव होता है। हाँलाकि, ऐसे में यह माता—पिता का ही दायित्व हैं कि वे अपने किशोर एवं युवा होते बच्चों के साथ मित्रवत व्यवहार की पहल करें, फिर वे भी नहीं हिचकिचायेंगे और अपनी हर बात उनसे शेयर करेंगे। इस सृष्टि पर कोई भी माता—पिता अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहता, इसी भावना से ओत—प्रोत हो कर हव अपने बच्चों की समस्याओं के लिए न केवल ढाल बनते हैं, बल्कि उन्हें दूर करने के हर सम्भव प्रयास करते हैं।

3- हथियार कभी भी न डालें: किशोरों एवं युवाओं के मन में यह बात अवश्य ही होनी चाहिये कि ट्टगिरते हैं सहसवार ही मैदान—ए—जंग में’अर्थात् जो लोग परिस्थितियों का मुकाबला करते हैं, तो कभी—कभी क्षणिक असफलता मिल सकती है। परन्तु, विपरीत परिस्थितियों के होने पर भी बिना तनाव या दबाव के, जो लोग उनका मुकाबला करते है तो फिर एक दिन सफलता उनके कदम चूमती है। इस बात के अनेकों उदाहरण हैं। इसलिए किशोरों को चाहिये कि वे बगैर हथियार डाले स्थितियों का सामना करें, उनसे जूझें एवं संघर्ष करें तथा उन पर विजय प्राप्त करें।

4- अपना माहौल थोड़ा बदलें: प्रायः, ऐसा होता है कि एक ही तरह की परिस्थितियों के निरन्तर बने रहने से स्ट्रेस अथवा तनाव की स्थितियाँ उत्पन्न होने लगती हैं। ऐसे में, यह चाहिये कि अपने दिन—प्रतिदिन के माहौल में थोड़ा सा बदलाव किया जाये। इसके लिए फिल्म देखना, शॉपिंग करना, दोस्तों के साथ पिकनिक पर जाना, रेस्टोरेन्ट में बैठ कर खाना—पीना, ग्रॉसिप्स एवं हँसी—मजाक कर लेने इत्यादि से रोज—रोज के घिसे—पिटे माहौल से थोड़ी निजात मिल जाती है, जिससे दिमाग तरो—ताज़ा हो जाता है, साथ ही तनाव में भी कमी आती है।

5- दिमाग को कभी—कभी आराम दें: निरन्तर काम या फिर पढ़ाई करते रहने से खाली समय में या फिर नहाते—धोते एवं खाते—पीते समय भी वही सारी बाते हमारे दिमाग में चलती रहती हैं, जिससे कि उसे कभी भी आराम नहीं मिल पाता है। इसके अतिरिक्त, केवल काम की ही बातों में खाये रहने या घिर हमेशा उन्हीं से सम्बन्धित बातों को करते रहने से भी ऐसी स्थितियाँ पैदा होती हैं। इसीलिए आवश्यक है कि अपने दिन—प्रतिदिन के काम, पढ़ाई, खाने—पीने, खेलने इत्यादि जैसे क्रियाकलापों को निर्धारित समय के अनुसार करें।
साथ ही, एक समय में एक ही काम करें जिससे कि दिमाग को शान्ति एवं आराम मिल सके।

6- पसन्दीदा संगीत सुनें: मनपसन्द संगीत सुनना स्तंभ में एक चिकित्सकीय पद्धति है, जो कि मनोवैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित है। मादक—कृत्यों के आदी रोगियों के इलाज में म्यूजिकल थेरेपी काफी कारगर मानी जाती है। इसके साथ ही, संगीत को ध्यान केन्द्रित करने में भी सहायक माना जाता है। संगीत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह मन को प्रसन्नचित एवं प्रफुल्लित कर देता है। इसीलिए स्ट्रेस अथवा तनाव के क्षणों में मनपसन्द संगीत सुनने से तरो—ताजा होने में सहायता मिलती है।

7- हास्यप्रद कार्यक्रम देंखें: स्ट्रेस अथवा तनाव को कम करने का एक अत्यन्त कारगार उपाय यह है कि बजाय सास—बहू आधारित कार्यक्रमों, जासूसी धारावाहिकों, अपराध आधारित कार्यक्रमों, जासूसी धारावाहिकों, अपराध आधारित सीरिचलों को देखने के, जिनके कारण वैसे ही तनावग्रस्त स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं तथा साथ ही दिमागी प्रिश्रम भी करना होता है हास्प्रद कार्यक्रमों को देखना चाहिये जिसमें अनावश्यक दिमाना खर्च नहीं होता है। हास्यप्रद कार्यक्रमों का सबसे महत्वपूर्ण पहले यह होता है कि इनसे ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न होती हैं जिनसे हँसी आती है जो कि तनाव ग्रस्त व्यक्ति के लिए चिकित्सा का काम करती है।

8- स्वयं से नीचे की स्थिति के लोगों पर भी एक नजर डालें: किशोरों एवं युवाओं को चाहिये कि जहाँ तक सम्भव हो हमेशा अपने समान सामाजिक आर्थिक स्थितियों, प्राथमिकताओं एवं अभिरूचियों वाले लोगों से ही मिलता करनी चाहिये। इससे आपस में व्यर्थ की विभिन्न वस्तुओं जैसे मँहगे कपड़े, मोबाइल इत्यादि सम्बन्धी प्रतिस्पर्धा नहीं पनपती है। परन्तु, ऐसा कोई नियम नहीं है। कभी—भी यदि किसी के मन में किसी भी प्रकार की हीन भावना उत्त्पन्न हो, तो ऐसे में अपने से निम्न स्थिति के लोगों पर भी एक नज़र डाल लें। इससे अपनी स्थिति बेहतर नज़र आयेगी तथा तनाव काम होगा।

9- शारीरिक खेलों पर भी ध्यान दें: आज कल बच्चे, किशोर तथा युवा सभी इंटरनेट एंव मोबाइल आधारित गेम्स में अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं, जिनमें किसी भी प्रकार के शारीरिक परिश्रम की आवश्यकता नहीं होती है। इसके साथ ही, इस प्रकार के गेम्स अकेले भी खेले जा सकने के कारण इनमें सामाजिक गुण सिखा सकने का गुण नहीं होता है। जबकि शारीरिक खोलों जैसे—क्रिकेट, फुटबाल, हॉकी, बॉलीबाल, टेनिस इत्यादि के निरन्तर खेलने से न केवल शरीर चुस्त एवं दुरूस्त रहता है बल्कि सामाजिक गुणों जैसे नेतृत्व, सहनशीलता, समायोजन की भी सीख मिलती है।

10- स्वयं को सर्वश्रेष्ठ कभी न समझें: जो लोग स्वयं को सर्वश्रेष्ठ समझते हैं, वास्तव में उनसे बड़ा मुर्ख इस संसार में कोई नहीं होता है। ऐसे लोग जब कभी भी परिस्थितियाँ प्रतिकूल होती हैं और उससे जरा सा भी संकटकालीन परिस्थितियाँ आती हैं तो वे उसे बर्दास्त नहीं कर पाते हैं। ऐसा इसलिए कि वे अपनी असफलता के लिए तैयार नहीं होते हैं जिसके परिमाणस्वरूप तनावग्रस्त हो जाते हैं।

11- स्वयं पर भरोसा करें:
स्ट्रेस अथवा तनाव एवं दबाव से बचने का एक मूलमन्ता है कि किशोर एवं युवा अपनी क्षमताओं पर भरोसा करना सीखें। किसी भी परिस्थिति से स्वयं को निकाल लेने के ढंगों से भी अधिक आवश्यक है कि मन में यह विश्वास हो कि यह तो मैं कर सकता/सकती हूँ’।

12- अत्यधिक महत्वाकांक्षा से बचें: आवश्यकता से अधिक महत्वाकांक्षी होना खतरे की घंटी माना जाता है। ऐसा इसलिए कि स्वयं की क्षमताओं के अनुरूप यदि आकांक्षाओं का स्तर हो तो ऐसे में वह महत्वाकांक्षा में परिणत हो जाती है। ऐसे में, वांछित ढंग से चीजें स्वयं के अनुरूप न होने से स्ट्रेस अथवा तनाव उत्पन्न होता है बल्कि लोग मनोरोगी तक हो जाते हैं।

उपरिवर्णित उपायों को समेकित रूप से किशोरों एवं युवाओं द्वारा दिन—प्रतिदिन की कार्य—प्रणाली में अपनाये जाने से स्ट्रेस मैनेजमेन्ट को सफलतापूर्वक अन्जाम दिया जा सकता है।

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