यूपी: कुछ जल्दबाजी तो नहीं कर रहे हम?

-ध्रुव गुप्त

यह चारण युग है। बेशर्म और बिकी हुई मीडिया की तो बात ही छोड़िए, राजनीति में धर्म के समावेश के विरोधी और तटस्थ कहे जाने वाले बहुत सारे लोग भी उत्तर प्रदेश सरकार की चाटुकारिता के कीर्तिमान गढ़ने में लग गए हैं। इतनी बेसब्री क्यों ? अब तक योगी सरकार ने ऐसा क्या किया है कि आपने सहसा पाला बदल लिया ? सचिवालय में गुटखा और पान मसाले पर रोक ? लोगों के स्वास्थ और स्वच्छता की चिंता है तो पूरे प्रदेश में इन चीज़ों पर प्रतिबंध क्यों नहीं लग सकता ? सचिवालय में मंत्रियों का झाडू लगाना ? प्रदेश के सभी जिलों के प्रशासन, नगरपालिकाओं और पंचायतों को सफाई रखने के लिए क्यों नहीं बाध्य किया जा सकता ? सूबे के अवैध बूचडखानों पर कारवाई कौन सा क्रांतिकारी काम है ? वैध बूचडखानों में क्या गाजर-मूली काटे जाते हैं ? आपने सरकार बनने के चौबीस घंटों के अन्दर सभी बूचडखानों को बंद करने का वादा किया था। अब वैध और अवैध का फ़र्क़ कहां से आ गया ? सरकार बनते ही किसानों की क़र्ज़ माफ़ी का वादा किया गया था। अभी खुद देश के वित्त मंत्री ने इसे जुमला करार दे दिया है। मंत्रियों से उनकी संपति का ब्यौरा मांगकर किसकी आंख में धूल झोंका जा रहा है ? अभी कुछ ही दिनों पहले तो सारे लोग चुनाव में नामांकन के वक़्त चुनाव आयोग के समक्ष अपनी संपति का खुलासा कर चुके हैं। लड़कियों के साथ छेड़खानी की घटनाओं के विरुद्ध जिलों में कथित रोमियो स्क्वाड का गठन एक अच्छा क़दम है, लेकिन आपकी सामंती और रूढ़िवादी पुलिस क्या इस काम के लिए प्रशिक्षित है ? सड़कों पर, पार्कों में या बाइक पर अपनी मर्ज़ी से साथ चल रहे लड़कों और लड़कियों को पुलिस बेवज़ह परेशान कर रही है। यह लोगों के मौलिक अधिकार का हनन है। पिछली सपा और बसपा सरकारों ने दलगत और जातीय हितों के लिए पुलिस और प्रशासन को पंगु और नाकारा बनाकर रखा था। उनमें फिर से जान फूंकने के लिए कुछ बुनियादी परिवर्तनों की ज़रुरत होगी। अभी उत्तर प्रदेश में मीडिया के कैमरों के सामने जो हो रहा है, वह चर्चा में रहने का सस्ता तरीका भर है।

मैं यह नहीं कहता कि योगी सरकार प्रदेश के लिए कुछ सार्थक नहीं करना चाहती। हमारी शुभकामनाएं उसके साथ है। लेकिन उसके क़दमों में लहालोट होने के पहले थोडा इंतज़ार तो कर लीजिए, मित्रों !
{फेसबुक वाल से साभार }

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