धारा 420: भारतीय न्याय संहिता में धोखाधड़ी या ठगी का अपराध 420 में नहीं, अब धारा 316 के तहत आएगा। इस धारा को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है।
यह सही है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 को अक्सर “ठगी” के रूप में जाना जाता है। इस धारा के तहत, किसी व्यक्ति को धोखा देकर या विश्वासघात करके उसका धन या संपत्ति प्राप्त करने के लिए दंडित किया जा सकता है।
हाल ही में, भारतीय संसद ने IPC की धारा 420 को संशोधित करने के लिए एक बिल पारित किया है। इस संशोधन के तहत, धारा 420 को धारा 316 में बदल दिया जाएगा।
इस संशोधन के पीछे मुख्य कारण यह है कि धारा 420 का उपयोग अक्सर गलत तरीके से किया जाता है। यह धारा अक्सर उन मामलों में लागू की जाती है जो वास्तव में ठगी के अंतर्गत नहीं आते हैं। उदाहरण के लिए, कई मामलों में, इस धारा का उपयोग उन मामलों में किया जाता है जहां कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देकर या विश्वासघात करके उसे नुकसान पहुंचाता है, लेकिन उसे कोई धन या संपत्ति प्राप्त नहीं होती है।
धारा 316 को लागू करने से यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक ठगी के मामलों में ही इस धारा का उपयोग किया जाए।
धारा 316 के प्रावधान
संशोधित धारा 316 के प्रावधान निम्नलिखित हैं:
- किसी व्यक्ति को धोखा देकर या विश्वासघात करके उसका धन या संपत्ति प्राप्त करने के लिए दंडित किया जा सकता है।
- इस धारा के तहत दंडित व्यक्ति को 1 से 7 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
- यदि ठगी के मामले में कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को चोट पहुंचाता है, तो उसे 3 से 10 वर्ष तक की कैद या जुर्माना या दोनों हो सकते हैं।
निष्कर्ष
IPC की धारा 420 को धारा 316 में बदलने से यह सुनिश्चित होगा कि केवल वास्तविक ठगी के मामलों में ही इस धारा का उपयोग किया जाए। यह संशोधन ठगी के मामलों में न्यायपालिका की कार्यप्रणाली को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
धारा 316 का स्थान
धारा 316 को भारतीय न्याय संहिता में अध्याय 17 में संपत्ति की चोरी के विरूद्ध अपराधों की श्रेणी में रखा गया है। यह धारा अन्य ठगी से संबंधित धाराओं के साथ-साथ रखी गई है, जैसे कि धारा 420, धारा 423 और धारा 424।
इस संशोधन के बाद, भारतीय न्याय प्रणाली में ठगी के मामलों को अधिक सुव्यवस्थित तरीके से निपटाया जा सकेगा।