Wednesday, May 8, 2024
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अयोध्या कारसेवक गोलीकांड

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अयोध्या गोलीकांड 30 अक्टूबर 1990 और 2 नवंबर 1990 को अयोध्या में हुए दो अलग-अलग गोलीबारी की घटनाओं को संदर्भित करता है। इन घटनाओं में, उत्तर प्रदेश पुलिस ने राम जन्मभूमि स्थल पर इकट्ठे हुए कारसेवकों पर गोलियां चलाईं, जिनमें से कई लोग मारे गए।

30 अक्टूबर 1990 को, लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की राम रथ यात्रा अयोध्या पहुंची। कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। पुलिस और कारसेवकों के बीच झड़पों में 5 लोग मारे गए।

2 नवंबर 1990 को, हजारों कारसेवक अयोध्या पहुंचे। उन्होंने हनुमान गढ़ी की ओर बढ़ना शुरू किया, जो बाबरी मस्जिद के पास स्थित है। पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की, लेकिन कारसेवकों ने पुलिस पर हमला कर दिया। पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए गोलियां चलाईं, जिसमें 45 लोग मारे गए।

कुल मिलाकर, अयोध्या गोलीकांड में 50 से अधिक राम सेवक मारे गए। इस घटना ने भारत में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ा दिया और राम मंदिर आंदोलन को और उग्र बना दिया।

अयोध्या गोलीकांड के बाद, भारत सरकार ने एक आयोग का गठन किया, जिसने घटना की जांच की। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पुलिस ने गोलीबारी में अनुचित व्यवहार किया था। आयोग ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की, लेकिन इस सिफारिश को कभी लागू नहीं किया गया।

अयोध्या गोलीकांड एक महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटना है। इस घटना ने भारत में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ाया और राम मंदिर आंदोलन को और उग्र बना दिया।

“अयोध्या गोलीकांड” का आदेश किसने दिया

अयोध्या गोलीकांड के आदेश का उत्तर विवादास्पद है। कुछ लोगों का कहना है कि आदेश उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने दिया था, जबकि अन्य का कहना है कि आदेश पुलिस अधिकारियों ने स्वयं लिया था।

मुलायम सिंह यादव ने बाद में गोलीबारी के लिए जिम्मेदारी ली थी। उन्होंने कहा था कि उन्होंने देश की एकता के लिए गोली चलवानी पड़ी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि उन्हें इसका अफसोस है।

पुलिस अधिकारियों ने भी गोलीबारी के लिए जिम्मेदारी ली थी। उन्होंने कहा था कि वे भीड़ को नियंत्रित करने के लिए मजबूर थे। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि वे गोलीबारी में किसी भी व्यक्ति की मृत्यु के लिए खेद व्यक्त करते हैं।

अयोध्या गोलीकांड की जांच के लिए भारत सरकार ने एक आयोग का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि पुलिस ने गोलीबारी में अनुचित व्यवहार किया था। आयोग ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की, लेकिन इस सिफारिश को कभी लागू नहीं किया गया।

आयोग की रिपोर्ट के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि अयोध्या गोलीकांड के आदेश का उत्तर मुलायम सिंह यादव और पुलिस अधिकारियों दोनों में था। मुलायम सिंह यादव ने गोलीबारी के आदेश को अंतिम रूप दिया था, लेकिन पुलिस अधिकारियों ने गोलीबारी को अंजाम दिया था।

कुछ मारे गए कारसेवकों की सूची और उनके निवास का शहर:

  • कोठारी बंधु (कोलकाता)
  • सेठाराम माली (जोधपुर)
  • रमेश कुमार (गंगानगर)
  • महावीर प्रसाद (फैजाबाद)
  • रमेश पांडे (अयोध्या)
  • वासुदेव गुप्ता (अयोध्या)
  • संजय कुमार (मुजफ्फरपुर)
  • प्रोफेसर महेंद्रनाथ अरोड़ा (जोधपुर)
  • एक अनाम साधु
  • राजेंद्र धारकर
  • बाबूलाल तिवारी (ग्राम नेमावर से)

कारसेवक – कोठारी ब्रदर्स (कोठारी बंधु)

कोठारी ब्रदर्स दो सगे भाई थे, राम कोठारी और शरद कोठारी। वे दोनों कोलकाता, पश्चिम बंगाल के रहने वाले थे। दोनों भाई राम मंदिर आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे।

30 अक्टूबर 1990 को, लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की राम रथ यात्रा अयोध्या पहुंची। कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। पुलिस और कारसेवकों के बीच झड़पों में 5 लोग मारे गए।

इन झड़पों में कोठारी ब्रदर्स भी शामिल थे। दोनों भाइयों ने विवादित ढांचे पर सबसे पहले भगवा झंडा फहराया था। हालांकि, बाद में पुलिस ने दोनों भाइयों पर गोलियां चलाईं, जिसमें वे दोनों शहीद हो गए।

कोठारी ब्रदर्स के बलिदान ने राम मंदिर आंदोलन को और उग्र बना दिया। उन्हें राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े नायकों में से एक माना जाता है।

कोठारी ब्रदर्स के बारे में कुछ और महत्वपूर्ण जानकारी निम्नलिखित है:

  • दोनों भाइयों की उम्र क्रमशः 22 और 20 वर्ष थी।
  • वे दोनों बीकानेर, राजस्थान के मूल निवासी थे।
  • उनकी बहन पूर्णिमा कोठारी है।
  • उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए थे।

कोठारी ब्रदर्स का बलिदान भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। उनके बलिदान ने राम मंदिर आंदोलन को एक नई दिशा दी और अंततः राम मंदिर के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त किया।

कोठारी ब्रदर्स का जन्म और प्रारंभिक जीवन

राम कोठारी का जन्म 1968 में और शरद कोठारी का जन्म 1970 में कोलकाता, पश्चिम बंगाल में हुआ था। उनके पिता का नाम वेदव्यास कोठारी और माता का नाम सुशीला कोठारी था। दोनों भाई बीकानेर, राजस्थान के मूल निवासी थे।

राम कोठारी ने कोलकाता के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से समाजशास्त्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। शरद कोठारी ने कोलकाता के गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ कॉमर्स से वाणिज्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

राम मंदिर आंदोलन में भागीदारी

राम कोठारी और शरद कोठारी बचपन से ही धार्मिक थे। वे रामायण और हिंदू धर्म के अन्य ग्रंथों के प्रति गहरी आस्था रखते थे। 1980 के दशक में, जब राम मंदिर आंदोलन शुरू हुआ, तो दोनों भाइयों ने इसमें सक्रिय रूप से भाग लिया।

वे अक्सर राम मंदिर आंदोलन के कार्यक्रमों में भाग लेते थे और राम मंदिर के निर्माण के लिए लोगों को जागरूक करने का काम करते थे। वे दोनों कई बार अयोध्या भी गए और राम मंदिर आंदोलन में शामिल हुए।

अयोध्या गोलीकांड में शहादत

30 अक्टूबर 1990 को, लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की राम रथ यात्रा अयोध्या पहुंची। कारसेवकों की भीड़ ने बाबरी मस्जिद को तोड़ने की कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उन्हें रोक दिया। पुलिस और कारसेवकों के बीच झड़पों में 5 लोग मारे गए।

इन झड़पों में कोठारी ब्रदर्स भी शामिल थे। दोनों भाइयों ने विवादित ढांचे पर सबसे पहले भगवा झंडा फहराया था। हालांकि, बाद में पुलिस ने दोनों भाइयों पर गोलियां चलाईं, जिसमें वे दोनों शहीद हो गए।

कोठारी ब्रदर्स की शहादत ने राम मंदिर आंदोलन को और उग्र बना दिया। उन्हें राम मंदिर आंदोलन के सबसे बड़े नायकों में से एक माना जाता है।

कोठारी ब्रदर्स का अंतिम संस्कार

कोठारी ब्रदर्स का अंतिम संस्कार 4 नवंबर 1990 को कोलकाता में हुआ था। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग शामिल हुए थे। लोगों ने उनके बलिदान को श्रद्धांजलि अर्पित की और उन्हें भारत के महान वीरों में से एक माना।

कोठारी ब्रदर्स का प्रभाव

कोठारी ब्रदर्स के बलिदान ने राम मंदिर आंदोलन को एक नई दिशा दी और अंततः राम मंदिर के निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त किया। उनके बलिदान ने हिंदुओं के बीच एक नई चेतना पैदा की और उन्हें अपने धर्म और संस्कृति के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया।

कोठारी ब्रदर्स को आज भी राम मंदिर आंदोलन के नायकों के रूप में याद किया जाता है। उनके बलिदान को भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना माना जाता है।

“युद्ध में अयोध्या” हेमंत शर्मा

युद्ध में अयोध्या एक हिंदी पुस्तक है जिसे वरिष्ठ पत्रकार हेमंत शर्मा ने लिखा है। यह पुस्तक अयोध्या के राम मंदिर आंदोलन पर केंद्रित है। पुस्तक में, शर्मा अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के इतिहास, आंदोलन के विभिन्न चरणों और इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का विस्तृत विवरण प्रदान करते हैं।

पुस्तक की शुरुआत में, शर्मा अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के इतिहास की समीक्षा करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे इस विवाद ने 16वीं शताब्दी में शुरू हुआ और कैसे यह आज भी जारी है। शर्मा फिर आंदोलन के विभिन्न चरणों का वर्णन करते हैं, शुरुआत से लेकर 2019 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक।

पुस्तक में, शर्मा आंदोलन के सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों पर भी चर्चा करते हैं। वे बताते हैं कि कैसे आंदोलन ने भारत में सांप्रदायिक तनाव को बढ़ावा दिया है और कैसे यह भारत की राजनीति को प्रभावित कर रहा है।

युद्ध में अयोध्या एक महत्वपूर्ण पुस्तक है जो अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के बारे में समझने के लिए आवश्यक है। यह पुस्तक आंदोलन के इतिहास, विभिन्न चरणों और इसके सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों का एक विस्तृत और सूचनात्मक विवरण प्रदान करती है।

पुस्तक को 2018 में प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित किया गया था। इसकी समीक्षाओं में से एक में, द हिंदू के एक समीक्षक ने लिखा, “युद्ध में अयोध्या एक महत्वपूर्ण और सूचनात्मक पुस्तक है जो अयोध्या के मंदिर-मस्जिद विवाद के बारे में समझने के लिए आवश्यक है।”

“युद्ध में अयोध्या” किताब के मुताबिक

“युद्ध में अयोध्या” किताब के मुताबिक, इस फायरिंग के खिलाफ फैजाबाद के आम नागरिक सड़क पर उतर आए. देर रात कोई डेढ़ हजार लोगों ने कमिश्नर मधुकर गुप्ता की कोठी को घेर लिया. इनमें आगे-आगे बच्चे और महिलाएं थीं. यह भीड़ कमिश्नर के घर में घुस गई. भीड़ पूछ रही थी, कारसेवकों पर गोली क्यों चलाई? उनका कसूर क्या था? बड़ी मिन्नतों के बाद कमिश्नर भीड़ को लौटने के लिए मना पाए. फैजाबाद में तीन नवंबर को तो भारी संख्या में महिलाओं ने कमिश्नर का आवास घेर लिया. ये सारी महिलाएं फैजाबाद के सैन्य और सरकारी अफसरों की पत्नियां थीं. इन महिलाओं ने कमिश्नर को घेरकर पूछा, “निहत्थे कारसेवकों पर गोली क्यों चलवाई?”

कमिश्नर बोले, “सरकार का आदेश था. महिलाओं ने कहा, “वे मुख्यमंत्री के अलोकतांत्रिक आदेशों को क्यों मान रहे हैं.” महिलाओं ने कमिश्नर से कहा कि “वे गोली की भाषा बंद करें.”

एक एडीएम की बीवी ने कहा-

“आप मजिस्ट्रेटों पर दबाव डालकर गोली चलाने के आदेश पर दस्तख्त क्यों करवाते हैं? आपने अगर अब ऐसा किया तो कोई मजिस्ट्रेट दस्तखत नहीं करेगा. जिन कारसेवकों को बातचीत से मनाया जा सकता है, जिन्हें गिरफ्तार सकता है, उन पर गोली चलाने का आदेश ही किसी पर दबाव नहीं डालेंगे.”

सवालों की बौछार से कमिश्नर के पसीने छूट रहे थे. एक अफसर की बीवी ने कहा-“आप मुलायम सिंह के हर मनमाने अलोकतांत्रिक निर्णय का समर्थन क्यों करते हैं ?

कमिश्नर मधुकर गुप्ता बोले- “तो मैं क्या करूं ?”

एक अफसर की पत्नी बोली- “आप उन्हें असलियत बताएं. संतों पर गोली चलाने से मना करें. उनके अवैधानिक निर्देश मानने से इनकार करें.”

कमिश्नर- “यह सरकार का फैसला है, इसमें हमारा कोई दखल नहीं है. हम आपकी भावनाओं को सरकार तक पहुंचा सकते हैं.”

तो एक मजिस्ट्रेट की बीवी बोली, “आप मुख्यमंत्री के हर गलत फैसले का समर्थन कर उन्हें तानाशाह बना रहे हैं.

कमिश्नर मधुकर गुप्ता- “वे बसों को तोड़ रहे थे. पथराव कर रहे थे.”

एक महिला ने जवाब दिया- “बसें तो बाद में बन सकती थीं. पर जिनकी गोदें सूनी हो गई हैं, जिनके सिंदूर उजड़ गए हैं, क्या आप उन्हें वापस ला सकते हैं?”

कमिश्नर के बोल नहीं फूटे. अफसरों की बीवियों ने चिल्ला-चिल्लाकर पूछा-

“लाठियां क्यों नहीं चलाई गईं? मुख्यमंत्री के सिर्फ इस ऐलान से कि कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता, आप लोगों ने चापलूसी में निहत्थे लोगों को गोलियों से भूनना शुरू कर दिया!

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